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The Panerai Legacy: From Naval Innovation to Luxury Icon

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पैनराई, जिसे घड़ियों का शौक रखने वाले लोग अच्छी तरह से जानते हैं, अब एक स्विस निर्मित घड़ी ब्रांड है जिसकी इतालवी जड़ें डेढ़ सदी से भी अधिक पुरानी हैं। कंपनी का एक लंबा इतिहास है, लेकिन एक प्रतिष्ठित कलेक्टर ब्रांड के रूप में इसकी जबरदस्त उभरने की कहानी, जिसे दुनिया भर में एक पंथ जैसी अनुयायी (जिसे पनेरिस्ती कहा जाता है) मिली है, सिर्फ 20 साल पुरानी है। यहां हम पैनराई की उत्पत्ति, इसके सैन्य और समुद्री इतिहास, और इसकी आधुनिक-काल की प्रतिष्ठित स्थिति पर एक नजर डालते हैं। पैनराई की उत्पत्ति और इसका प्रारंभिक सैन्य इतिहास 1860 में, इतालवी घड़ी निर्माता जियोवानी पैनराई ने फ्लोरेंस के पोंटे आले ग्राज़ी पर एक छोटी घड़ी निर्माता की दुकान खोली, जहाँ उन्होंने घड़ी की सेवाएं प्रदान करने के साथ-साथ एक घड़ी निर्माण स्कूल के रूप में भी काम किया। कई वर्षों तक, पैनराई ने अपनी छोटी दुकान और स्कूल का संचालन किया, लेकिन 1900 के दशक में कंपनी ने रॉयल इटालियन नेवी के लिए घड़ियों का निर्माण शुरू किया। इसके अलावा, उनकी दुकान, जी. पैनराई और फिग्लियो, पियाज़ा सैन जियोवानी में एक अधिक केंद्रीय स्थान पर स्थानां

Myanmar Democracy Icon - Aung San Suu Kyi

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Myanmar Democracy Icon - Aung San Suu Kyi  म्यांमार में बड़ा राजनीतिक बवाल हुआ। म्यांमार पर सेना का कब्जा है। म्यांमार (म्यांमार) की सबसे बड़ी नेता आंग सान सू की को फिर से हिरासत में लिया गया है। आंग सान सू की को 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे पहले भी उन्हें कई बार छोटी अवधि के लिए हिरासत में लिया गया है। आंग सान लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधान मंत्री, प्रमुख विपक्षी नेता और म्यांमार के लोकतंत्र के लिए नेशनल लीग के नेता हैं। आंग सान सू की को 1990 में राफेटो पुरस्कार, 1991 में सखारोव पुरस्कार (विचार की स्वतंत्रता के लिए) और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 1992 में, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सामंजस्य के लिए भारत सरकार द्वारा जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें पिछले कई वर्षों से बर्मी सैन्य सरकार द्वारा नजरबंद रखा गया था। उन्हें 13 नवंबर 2010 को रिहा कर दिया गया और फिर से हिरासत में लिया गया। व्यक्तिगत जीवन आंग सान सू की का जन्म 19 जून 1945 को रंगून में हुआ था। वह रंगून में पिता आंग सान, मां खिन के और दो भाइयों आंग सान लिन और आ

Pakistani Social Worker- Malala Yousafzai

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विश्व की सबसे कम उम्र की सबसे अधिक प्रभावशाली महिला, 2014 में शांति का नोबेल पुरस्कार विजेता और समाज सेविका, मृत्यु पर विजय पाने वाली पाकिस्तानी मलाला युसुफ़ज़ई (Pakistani Social Worker-  Malala Yousafzai)। नाम सुनते ही उनकी कोमल छवि आंखो के सामने चित्रित हो जाती है। इनको 2014 में शांति का नोबेल पुरस्कार कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से दिया गया था। मलाला (malala yousafzai)लड़कियों को पढ़ाने का काम करने के कारण वो तालिबानी आतंकवादियों की गोलियो का निशाना भी बनी क्योंकि तालिबान महिलाओ की पढ़ाई को मज़हब विरुद्ध समझते थे इसलिये तालिबान ने महिलाओ की पढ़ाई पर रोक लगाई हुई थी। इन सब तकलीफो के बवजूद वो आज भी दृढ़ होकर अपने कर्म पथ पर बिना किसी भय के चल रही है। जीवन परिचय पूरा नाम मलाला युसुफ़ज़ई जन्म दिनांक 12 जुलाई 1997 जन्मस्थान मिंगोरा , पाकिस्तान पिता का नाम जियाउद्दीन युसुफ़ज़ई माता का नाम टूर पकाई युसुफ़ज़ई भाइयों का नाम खुशहाल और अटल

Medicine is my lawful wife, and literature is my Girlfriend- Happy Birth Anton Chekhov

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  अन्तोन पाव्लाविच चेख़व रूसी साहित्यकार कथाकार और नाटककार थे। उनकी  रचनाएं दूसरे देशों और दूसरी भाषाओं में भी बहुत पसंद से पढ़ी जाती हैं  उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में उन्होंने रूसी भाषा को चार नाटक दिए जबकि उनकी कहानियाँ विश्व के समीक्षकों और आलोचकों में बहुत सम्मान के साथ सराही जाती हैं। चेखव एक कुशल चिकित्सक के साथ-साथ महान साहित्यिक थे। वे कहा करते थे कि चिकित्सा मेरी धर्मपत्नी है और साहित्य प्रेमिका।  जिस तरह से एक कुशल डॉक्टर बीमारी के इलाज के लिए शरीर की गहराई से पड़ताल करता है, चेखव अपनी रचनाओं में उसी गहराई के साथ रूसी समाज की पड़ताल करते हैं. चेखव विज्ञान और साहित्य के अंतर से परिचित थे, इस वजह से वे साहित्य में डॉक्टर की तरह पड़ताल तो भले ही करते हैं लेकिन कोई समाधान नहीं देते हैं. उनकी रचनाएं खुद पाठकों को समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका जन्म दक्षिण रूस के तगानरोग में 29 जनवरी 1860 में एक दूकानदार के परिवार में हुआ। 1868 से 1879 तक चेखव ने हाई स्कूल की शिक्षा ली। 1879 से 1884 तक चेखव ने मास्को के मेडिकल कालेज में शिक्षा पूरी की और डाक्टरी करने लगे। 1880 में च

Proud Day Of India- Republic Day

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  26 जनवरी का दिवस भारत मे गणतंत्र के रूप एक राष्ट्रीय पर्व की तरह मनाया जाता है । 26 जनवरी, 1950 के दिन भारत को  गणतांत्रिक राष्ट्र घोषित किया गया था । इसी दिन स्वतंत्र भारत का नया संविधान लिखा गया था । यह भारतीय लोगोके लिए गौरवका दिन था । संविधान के अनुसार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने । 26 जनवरी को हर वर्ष गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है । 26 जनवरी पूरे देश भर में विशेष कार्यक्रम होते हैं । विद्‌यालयों, कार्यालयों तथा सभी प्रमुख स्थानों में राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराने का कार्यक्रम होता है । बच्चे का इसमे महत्वपूर्ण स्थान होता है। लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं । स्कूली बच्चे जिला मुख्यालयों, प्रांतों की राजधानियों तथा देश की राजधानी के परेड में भाग लेते हैं । विभिन्न स्थानों में सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं । लोकनृत्य, लोकगीत, राष्ट्रीय गीत तथा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम होते हैं ।  गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य कार्यक्रम राजधानी दिल्ली में होता है । विजय चौक पर मंच बना होता है जहां दर्शको तंता लगा होता है । राष्ट्रपति अपने अंगरक्षकों के साथ

Rajneesh's Journey To Become Lord Osho

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 एक ऐसा व्यक्ति जिसका रहस्यमय व्यक्तित्व जो चंद्र ग्रहन की तरह, होता तो है पर नग्न आंखो से दिखाई नही पडता । अध्यात्मिक शिक्षक,विवादास्पद नेता,वक्ता,योगी ,कामुक गुरु और रहस्यमयी धर्मगुरु जो ओशो के नाम विख्यात थे । हम बात कर रहे है आचार्य रजनीश(चन्द्र मोहन जैन) की। जिन्होंने गतिशील ध्यान को आध्यात्मिक अभ्यास का जरिया बनाया था ।ओशो ने रूढ़ीवादी समाज का विरोध किया। समाज में फैले धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों पर कई सवाल उठाए। ओशो एक अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त आध्यात्मिक गुरु थे। मानवी कामुकता पर भी वे सार्वजनिक जगहों पर अपने विचार व्यक्त करते थे, इसीलिए अक्सर उन्हें “सेक्स गुरु” भी कहा जाता था, भारत में उनकी यह छवि काफी प्रसिद्ध थी, लेकिन बाद में फिर इंटरनेशनल प्रेस में लोगो ने उनके इस स्वभाव को अपनाया और उनका सम्मान किया।ओशो गाँधी जी के मुखर आलोचक भी थे।  ओशो ने अपने अधिकतर प्रवचनों में गांधी की विचारधारा का विरोध किया है। उनका मानना था कि यह विचारधारा मनुष्य को पीछे ले जाने वाली है। ओशो की एक किताब जो पूर्णत: गांधी जी पर केंद्रित है अस्वीकृति में उठा हाथ में ओशो कहते है मे