Osho Biography in Hindi – A Journey of Meditation, Love, and Consciousness

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  Osho Biography in Hindi – A Journey of Meditation, Love, and Consciousness ओशो की जीवनी हिंदी में – ध्यान, प्रेम और चेतना का सफर ओशो — एक ऐसा नाम जिसने ध्यान, प्रेम और चेतना की परिभाषा को ही बदल दिया। बचपन से लेकर आत्मज्ञान, फिर विश्वगुरु बनने तक का उनका सफर रहस्यों, क्रांति और गहन अनुभूतियों से भरा रहा। ओशो न केवल एक आध्यात्मिक गुरु थे, बल्कि उन्होंने पूरे विश्व को जीवन को जीने का नया तरीका सिखाया। इस ब्लॉग में हम ओशो की सम्पूर्ण जीवनी हिंदी में जानेंगे — उनका प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, आत्मबोध, ध्यान की तकनीकें, विवाद, अमेरिका यात्रा, और अंततः उनकी मृत्यु तक की सम्पूर्ण कहानी। अगर आप ओशो के जीवन और विचारों से प्रेरणा लेना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए एक अद्भुत शुरुआत है। प्रारंभिक जीवन ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम रजनीश चंद्र मोहन जैन था। उनके पिता का नाम बाबूलाल जैन और माता का नाम सरस्वती देवी था। वे कुल ग्यारह भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। ओशो बचपन से ही बहुत जिज्ञासु और स्वतंत्र सोच रखने वाले थे। उन्होंन...

The Divine Journey of Shri Premanand Govind Sharan Ji Maharaj | From Renunciation to Radha Bhakti

 

The Divine Journey of Shri Premanand Govind Sharan Ji Maharaj | From Renunciation to Radha Bhakti

The Divine Journey of Shri Premanand Govind Sharan Ji Maharaj | From Renunciation to Radha Bhakti

"श्री प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की दिव्य यात्रा | वैराग्य से राधा भक्ति तक"

🔶 प्रस्तावना

सनातन धर्म की भक्ति परंपरा में अनेक संतों ने जनमानस को परमात्मा से जोड़ने का कार्य किया है, लेकिन कुछ संत ऐसे होते हैं जिनका जीवन स्वयं एक जीवंत कथा बन जाता है। ऐसे ही संत हैं — श्री प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज। जिनका जीवन त्याग, तपस्या, सेवा और राधा-कृष्ण भक्ति से सराबोर रहा है।



🔶 जन्म और प्रारंभिक जीवन

श्री प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का जन्म 30 मार्च 1969 को उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के सरसौल ब्लॉक स्थित अखरी गाँव में हुआ था। उनका जन्म एक धार्मिक और वैदिक परंपरा से युक्त ब्राह्मण परिवार में हुआ। माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे — पिता का नाम श्री शम्भु पांडेय और माता का नाम श्रीमती रामादेवी

बाल्यकाल में उनका नाम अनिरुद्ध पांडेय रखा गया। उनका बचपन से ही अध्यात्म और भक्ति की ओर झुकाव था। अन्य बच्चों की तरह उनका मन खेलों में नहीं लगता था, बल्कि वे मंदिरों में जाकर भजन-कीर्तन में लीन रहते।


🔶 एक प्रेरक प्रसंग: रामायण की कथा

कहा जाता है कि जब वे मात्र 5 वर्ष के थे, तब उन्होंने एक मंदिर में तुलसीदास जी की रामायण की कथा को इतने भाव-विभोर होकर सुना कि उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। वह दिन उनकी आत्मिक जागृति का प्रारंभ था।


🔶 13 वर्ष की आयु में घर-त्याग

जब वे 13 वर्ष के हुए, उन्होंने संसार की माया को त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने माता-पिता से बिना कहे ही एक दिन घर छोड़ दिया। वे साधु वेश में आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी नाम से काशी (वाराणसी) पहुँचे।

वहाँ तुलसी घाट के पास एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर उन्होंने कठोर तपस्या आरंभ की। भोजन के लिए कभी भीख नहीं माँगी — जो मिल गया, वही स्वीकार किया। यह साधना लगभग 4 वर्ष तक चली।


🔶 काशी में तप और साधना

उन्होंने 'आकाशवृत्ति' व्रत को अपनाया, जिसमें साधु किसी से कुछ नहीं माँगता। जो कुछ भी प्राकृतिक रूप से प्राप्त हो जाए, वही संतोषपूर्वक ग्रहण करता है। कई बार उन्हें भूखा रहना पड़ा, लेकिन उनका मनोबल कभी नहीं टूटा।

एक बार, लगातार तीन दिन तक उन्हें कुछ भी खाने को नहीं मिला, लेकिन तब भी उन्होंने तपस्या नहीं छोड़ी। वे कहते हैं — "जो भगवान देता है, वही मेरा प्रसाद है।"


🔶 वृंदावन यात्रा और दिव्य अनुभूति

लगभग 17 वर्ष की आयु में वे वृंदावन पहुँचे। वहाँ एक दिन उन्होंने श्रीरासलीला का एक भव्य मंचन देखा। रासलीला के दौरान उनका हृदय पूर्ण रूप से प्रभु प्रेम में डूब गया। उन्होंने अनुभव किया कि राधा-कृष्ण केवल लीलाएं नहीं हैं, वे स्वयं ब्रह्म हैं।

उसी समय उन्हें राधावल्लभ संप्रदाय के प्रमुख संत श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज (बड़े गुरु जी) मिले। उन्होंने अनिरुद्ध को दीक्षा दी और नया नाम दिया — प्रेमानंद गोविंद शरण। यहीं से उनकी राधा-कृष्ण भक्ति की यात्रा प्रारंभ हुई।


🔶 गुरु सेवा: एक तपस्वी का आत्मसमर्पण

गुरु आज्ञा से उन्होंने किसी भी प्रकार का प्रचार, प्रवचन या प्रसिद्धि की इच्छा नहीं रखी। वे आश्रम में रहकर रसोई, झाड़ू, गौसेवा, भजन, भागवत श्रवण और रसोई कार्य करते रहे। लगभग 10 वर्षों तक वे सेवा में लीन रहे।

उनका कहना है: "जो व्यक्ति सेवा नहीं कर सकता, वह साधना भी नहीं कर सकता।"


🔶 श्रीमद्भागवत कथा का प्रचारक जीवन

एक दिन गुरुजी ने आदेश दिया कि वे भागवत कथा का प्रचार करें। तब उन्होंने पहले अपने गाँव में एक कथा का आयोजन किया। फिर धीरे-धीरे उनका प्रचार भारत के कई राज्यों में फैल गया।

उनकी वाणी सरल और सजीव होती है। वे कथा में रोते हैं, हँसते हैं, गाते हैं और भावों से भर देते हैं। उनकी हर कथा में एक ही भाव होता है — राधा प्रेम।


🔶 रोचक किस्सा: राधा नाम और चमत्कार

एक बार एक भक्त बहुत गंभीर बीमारी से पीड़ित था और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। वह वृंदावन आया और प्रेमानंद जी की कथा में बैठा। कथा के अंत में उसने केवल “राधा” नाम का जप करना शुरू किया। कुछ ही दिनों में वह पूर्ण स्वस्थ हो गया।

यह चमत्कार नहीं, प्रेम का प्रभाव था।


🔶 राधा केली कुञ्ज ट्रस्ट

2016 में श्री प्रेमानंद जी ने वृंदावन में 'श्री राधा केली कुञ्ज ट्रस्ट' की स्थापना की। यह ट्रस्ट सामाजिक और धार्मिक कार्यों में समर्पित है:

  • निःशुल्क भोजन सेवा

  • निर्धनों को वस्त्र और औषधियाँ

  • गौसेवा और रक्षाबंधन

  • भागवत कथा आयोजन

  • साधकों के लिए भजन स्थल की व्यवस्था


🔶 स्वास्थ्य संघर्ष: किडनी रोग

प्रेमानंद जी महाराज को Polycystic Kidney Disease नामक गंभीर रोग है, जिसमें किडनियाँ धीरे-धीरे कार्य करना बंद कर देती हैं। पिछले 20 वर्षों से वे डायलिसिस पर हैं, फिर भी उन्होंने कभी भक्ति से मुँह नहीं मोड़ा।

उनकी यह पंक्ति प्रसिद्ध है: "मेरी दोनों किडनी का नाम राधा और कृष्ण है। जब तक वे साथ हैं, मैं स्वस्थ हूँ।"


🔶 रोचक प्रसंग: सेवा के लिए रुक गया प्रवचन

एक बार कथा के दौरान उन्होंने देखा कि एक वृद्ध महिला आश्रम में झाड़ू लगा रही थी। उन्होंने तुरंत कथा रोक दी और स्वयं झाड़ू उठाकर सफाई शुरू कर दी। यह देखकर सभी भक्त भाव-विभोर हो उठे।

वे कहते हैं — “प्रवचन बाद में, सेवा पहले।”


🔶 दैनिक दिनचर्या

समयक्रिया
02:30 AM            परिक्रमा
05:00 AM            मंगल आरती
06:00–08:00 AM            भजन, ध्यान
08:15–09:15 AM    रास आरती और नामजप
04:00 PM            धूप आरती
04:15–05:30 PM            वाणी पाठ
06:00 PM            संध्या आरती
09:00 PM            शयन आरती

🔶 भक्ति का संदेश

उनकी शिक्षाएँ:

  1. राधा नाम में ही संपूर्ण ब्रह्मांड का सार है।

  2. सेवा के बिना साधना अधूरी है।

  3. बिना गुरु के मार्ग नहीं मिलता।

  4. रासलीला केवल अभिनय नहीं, आत्मा का अनुभव है।


🔶 निष्कर्ष

प्रेमानंद जी महाराज का जीवन आज के युग में एक जीवंत संदेश है कि त्याग, सेवा, भक्ति और प्रेम के बल पर कोई भी ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।

उनका पूरा जीवन एक आदर्श है — न कोई दिखावा, न प्रचार की चाह, केवल सच्ची साधना और प्रेम। वे कहते हैं:

“जिस दिन हृदय में राधा आ जाती हैं, उसी दिन जीवन का अंधकार समाप्त हो जाता है।”



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