The Panerai Legacy: From Naval Innovation to Luxury Icon

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पैनराई, जिसे घड़ियों का शौक रखने वाले लोग अच्छी तरह से जानते हैं, अब एक स्विस निर्मित घड़ी ब्रांड है जिसकी इतालवी जड़ें डेढ़ सदी से भी अधिक पुरानी हैं। कंपनी का एक लंबा इतिहास है, लेकिन एक प्रतिष्ठित कलेक्टर ब्रांड के रूप में इसकी जबरदस्त उभरने की कहानी, जिसे दुनिया भर में एक पंथ जैसी अनुयायी (जिसे पनेरिस्ती कहा जाता है) मिली है, सिर्फ 20 साल पुरानी है। यहां हम पैनराई की उत्पत्ति, इसके सैन्य और समुद्री इतिहास, और इसकी आधुनिक-काल की प्रतिष्ठित स्थिति पर एक नजर डालते हैं। पैनराई की उत्पत्ति और इसका प्रारंभिक सैन्य इतिहास 1860 में, इतालवी घड़ी निर्माता जियोवानी पैनराई ने फ्लोरेंस के पोंटे आले ग्राज़ी पर एक छोटी घड़ी निर्माता की दुकान खोली, जहाँ उन्होंने घड़ी की सेवाएं प्रदान करने के साथ-साथ एक घड़ी निर्माण स्कूल के रूप में भी काम किया। कई वर्षों तक, पैनराई ने अपनी छोटी दुकान और स्कूल का संचालन किया, लेकिन 1900 के दशक में कंपनी ने रॉयल इटालियन नेवी के लिए घड़ियों का निर्माण शुरू किया। इसके अलावा, उनकी दुकान, जी. पैनराई और फिग्लियो, पियाज़ा सैन जियोवानी में एक अधिक केंद्रीय स्थान पर स्थानां...

THE LEGEND- NUSRAT FATECH ALI KHAN

NUSRAT FATECH ALI KHAN


आज हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ हमारा जीवन संगीत के बिना अधूरा सा लगता है। आज के गीत कलाकार ने अपनी मखमली आवाज से सभी का दिल जीत लिया है। भारत के कई प्रसिद्ध गीतकारों ने किशोर कुमार, मुकेश, आरडी बर्मन, मोहम्मद रफ़ी और कई अन्य सितारों के साथ फिल्मों के माध्यम से गीत पेश किए हैं, जिन्होंने उन्हें फ़िल्मी दुनिया को गीत देकर जीवंत प्रदर्शन में बदल दिया है।

भारत, विदेश के कलाकारों के लिए एक बहुत बड़ा मंच है, कई गीतकार बाहर से यहां आए हैं जिन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। राहत फतेह अली खान, आतिफ असलम, गुलाम अली, अदनान सामी, फवाद खान ने बॉलीवुड में गाया है। उनमें से कुछ अभी भी बॉलीवुड फिल्मों के लिए गाते हैं, लेकिन कुछ अन्य हैं जो कुछ समय के लिए गाकर अपने देश लौट आए हैं, लेकिन उनका दुनिया में एक बड़ा नाम है, आइए उनमें से एक के बारे में बात करते हैं उस्ताद नुसरत फतेह अली खान (NUSRAT FATECH ALI KHAN) ।

नुसरत फतह अली खान ((NUSRAT FATECH ALI KHAN) सूफी शैली के एक प्रसिद्ध कव्वाल थे। उनके गायन ने पाकिस्तान से परे  अन्य देशो मे कव्वाली ला दी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल की। 13 अक्टूबर 1948 को पंजाब के फैसलाबाद में पैदा हुए नुसरत फतह अली, उनके पिता उस्ताद फतह अली खान साहब के घर में, जो खुद बहुत मशहूर और मारूफ कव्वाल थे, बेटे को इस क्षेत्र में आने से रोकते थे और वे चाहते थे कि 600 वर्षों के परिवार की परंपरा को तोड़ें, लेकिन ईश्वर को कुछ और स्वीकार था , ईश्वर ने इस परिवार को 600 साल से जो आशीर्वाद दिया था, पिता को यह मानना ​​पड़ा कि नुसरत की आवाज़ उस परिवार के लिये एक भेंट थी और वह रोक नहीं सके नुसरत को और आज इतिहास हमारे सामने है।

उनके 125 एल्बम रिलीज़ हो चुके हैं। नुसरत फते अली साहब द्वारा उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। क्या व्यक्तित्व, क्या आवाज , क्या लहर और किस शैली का गायन, जैसा कि ईश्वर स्वयं धरातल पर आये हो।

मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि जब नुसरत साहब गाते हैं, तो ईश्वर भी कहीं आसपास ही रहते होगे, उनको गीतो को सुनते होगे। धन्य हैं वे लोग जो उस समय वहाँ उपस्थित होंगे। उनकी आवाज - उनकी शैली, उनका हाथ हिलाना, चेहरे पर गंभीरता, संगीत का उत्कृष्ट उपयोग, ये सभी आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। दुनिया ने उन्हें देर से पहचाना, लेकिन जब उन्होंने पहचाना, तो दुनिया भर में उनके प्रशंसकों की कमी नहीं थी। 1993 में शिकागो के शीतकालीन महोत्सव में लोग आज भी उस शाम को याद करते हैं, जहां नुसरत जी ने पहली बार रॉक-कॉन्सर्ट के बीच अपनी कव्वाली का रंग खेला, लोगों ने उछल-उछल कर नृत्य किया, उस 20 मिनट के जादूई प्रदर्शन  अमेरिका में में छा गया, वहां उन्होंने पीटर ग्रैबिएल की फिल्म के लिए अपनी आवाज दी।

उस्ताद नुसरत फतेह अली खान का जन्म 13 अक्टूबर 1948 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के फैसलाबाद शहर में हुआ था। नुसरत फतेह अली खान का असली नाम परवेज फतेह अली खान था। उनके पिता फतेह अली खान भारत के एक प्रसिद्ध कव्वाल थे। नुसरत साहब का परिवार पिछले 600 सालों से कव्वाली गा रहा है। नुसरत साहब ने पहले अपने पिता से तबला सीखा, बाद में उन्होंने अपने चाचा सलामत अली खान से हारमोनियम का ज्ञान लिया। नुसरत 16 साल के थे जब उनके पिता की मृत्यु हो गई। उन्होंने पहली बार अपने पिता के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में आयोजित कव्वाली कार्यक्रम में लोगों के सामने कव्वाली गाई।

नुसरत के पिता उन्हें कव्वाल नहीं बनाना चाहते थे। उनका मानना ​​था कि कव्वाली में उनकी स्थिति एक छोटे आदमी की तरह है। वह नुसरत साहब को डॉक्टर बनाना चाहते थे। नुसरत का अपने पिता की मृत्यु के लगभग 10 दिन बाद एक सपना आया, जिसमें फतेह अली खान साहब नुसरत से कहते हैं कि आपको कव्वाल बनना और कव्वाली पढ़ना है और आगे बढ़ना होगा। फिर उन्होंने अपने चाचा सलामत अली खान और मुबारक अली खान के साथ छोटे स्तर पर कव्वाली गाना शुरू किया।

नुसरत अपने चाचा मुबारक अली खान की मृत्यु के बाद अपने परिवार के प्रमुख कव्वाल बन गए। उनकी पार्टी का नाम तब "नुसरत फतेह अली खान, मुजाहिद मुबारक अली खान कव्वाल एंड पार्टी" था। नुसरत फ़तेह अली खान का नाम परवेज फ़तेह अली खान था जब वह ग़ुलाम-ग़ौस-समदानी के यहँ गए, जहाँ नुसरत की कला के बारे में जानने के बाद ग़ुलाम-ग़ौस-समदानी ने उनका नाम नुसरत रखा। नुसरत नाम का अर्थ होता है विजय, जीत. उन्होंने कहा था की नुसरत एक दिन बहुत ही बड़ा कव्वाल बनेगा और परिवार का नाम दुनिया में रोशन करेगा.

"हक अली अली मौला अली अली" नामक एक कव्वाली ने नुसरत का नाम पाकिस्तान सहित दुनिया में ला दिया। उन्होंने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उस समय उनके नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में 125+ कव्वाली के सबसे ज्यादा गाने का रिकॉर्ड था। उनके साथ उनके भाई फारुख फतेह अली खान और कई चचेरे भाई भी गाते थे  दिलदार हुसैन नाम का तबला वादक उनके साथ तबला बजाता था। अगर नुसरत को दुनिया में लाने और उसे प्रसिद्ध बनाने में किसी का सबसे बड़ा हाथ है, तो पीटर गेब्रियल ने कनाडाई गिटारवादक माइकल ब्रूक से नुसरत के साथ कुछ कार्यक्रमों में अपने गिटार की आवाज देने के लिए कहा।

नुसरत फ़तेह अली खान ने 1987 में अपने प्रदर्शन से प्राइड ऑफ़ पाकिस्तान अवार्ड प्राप्त किया। उसके बाद नुसरत ने 1989 में पहली बार विदेश में प्रदर्शन करना शुरू किया। नुसरत का नाम संगीत जगत के बड़े गीतकारों में दिखाई देने लगा। उन्हें शहंशाह-ए-कव्वाली नुसरत के रूप में भी जाना जाता है, जो बॉलीवुड में कुछ गीत  गए हैं, जैसे अफरीन आफरीन, दुल्हे का सेहरा, छोटी सी उमर,प्यार नहीं करना. । इन गीतों में नुसरत का सर्वश्रेष्ठ गीत और परिचित गीत दुल्हे का सेहरा था। यह गाना धड़कन फिल्म में फिल्माया गया था।

नुसरत ज्यादातर 1990 के बाद विदेशों में गाते थे, उन्होंने राहत फतेह अली खान को 6 साल की उम्र से गाना और हारमोनियम बजाना सिखाया। राहत ने 9 साल की उम्र में पहली बार नुसरत साहब के साथ एक कव्वाली गाई।

NUSRAT FATECH ALI KHAN


1997 में नुसरत एक संगीत कार्यक्रम के लिए लंदन गई थीं, लेकिन उस समय उनका स्वास्थ्य गंभीर था, लेकिन अपने अंतिम संगीत कार्यक्रम को रद्द करने के बजाय, उन्होंने उसे स्ट्रेचर पर करा,  उस संगीत कार्यक्रम के कुछ दिनों बाद ही  नुसरत साहब की 16 अगस्त 1997 को लंदन में  हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई।। 

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