Barack Obama: Inspiring Life Journey and Powerful Leadership Lessons

Image
  Barack Obama inspirational oil painting with USA flag and his famous quote on leadership — “Leadership is not about the next election, it’s about the next generation.” 🟩 Barack Obama: एक प्रेरक जीवन यात्रा और Leadership के Golden Lessons Barack Obama: Ek Prerak Kahani aur Leadership Lessons Jo Duniya Ko Badal Gaye 🌍 परिचय (Introduction) Barack Obama — एक ऐसा नाम जो पूरी दुनिया में hope (आशा) और change (परिवर्तन) का प्रतीक बन गया। America के पहले African-American President होने के साथ-साथ, उन्होंने यह साबित किया कि अगर आपके पास vision, determination और integrity है, तो कोई भी सपना असंभव नहीं। Obama की life एक message देती है — “Success is not about where you start, it’s about how far you go with purpose.” 🌱 शुरुआती जीवन (Early Life: A Common Beginning with Uncommon Dreams) Barack Hussein Obama II का जन्म 4 August 1961 को Honolulu, Hawaii में हुआ। उनके पिता Barack Obama Sr. Kenya से थे और माता Ann Dunham Kansas (USA) से। उनका बचपन multicultural environment में ...

LORD SHIVA



प्रस्तावना

 भारत में हिंदुओं द्वारा 33 करोड़ देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है परंतु उसमें महादेव एक प्रमुख स्थान रखते है। देवों के देव महादेव अनादि और अनंत है भारतवर्ष में सभी देवी देवताओं की जन्म कथाएं प्रचलित है किंतु महादेव अजन्मे है इसका तात्पर्य यह है कि वह सृष्टि की रचना से पहले से इस सृष्टि में विद्यमान है और जब यह सृष्टि समाप्त हो जाएगी तब सिर्फ और सिर्फ महादेव ही इस सृष्टि में होंगे।ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी की पूर्ण शक्ति इसी पंचाक्षर मंत्र मे निहित है। त्रिदेवो मे ब्रह्मदेव सृष्टि रचयिता, श्रीहरि पालनहार और भगवान भोलेनाथ विध्वंसक है शिव जी बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं इस वजह से उन्हें आशुतोष ही कहा जाता है। भगवान शिव की आराधना करने वालों ने शैव नाम से एक संप्रदाय चलाया है । इस संप्रदाय में  सिर्फ भगवान शिव की उपासक होते है। शैव संप्रदाय द्वारा सिर्फ भगवान शिव की पूजा-अर्चना और उपासना की जाती है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार भगवान शिव के 108 नाम है उसमें से सबसे ज्यादा प्रचलित नाम भगवान शिव, शंकर, भोलेनाथ, पशुपति, त्रिनेत्र, पार्वतिनाथ आदि है।

शिव-शक्ति स्वरुप

शिव तभी शिव कहलाते हैं जब उनके साथ शक्ति होती है जिस प्रकार बिना शक्ति के मनुष्य का शरीर शव समान कहलाता है । उसी प्रकार बिना शक्ति के शिव अपूर्ण है।भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप इसी बात का प्रतीकात्मक स्वरूप है।उनका यह स्वरूप हमें यह ज्ञान देता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं और वह जब मिल जाते हैं तभी संपूर्ण कहलाते हैं यहां किसी की महत्वता कम नहीं है अपितु सम्मान है।

शिवरात्रि का नाम किस प्रकार पड़ा और उसका महत्व

शिव पुराण के अनुसार सभी जीव जंतु कीट पतंगों के स्वामी और अधिनायक भगवान शिव है यह सभी जीव जंतु कीट पतंग भगवान शिव की इच्छा के अनुसार अपने कार्य और अपने व्यवहार को प्रगट करते हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव छह माह अपनी ग्रह स्थल कैलाश पर्वत पर रहकर तपस्या में लीन रहते हैं उसके साथ ही सभी कीड़े मकोड़े भी अपने बिलों में बंद रहते है उसके बाद छह माह तक कैलाश पर्वत से उतर कर वह धरती पर श्मशान घाट में निवास करते हैं। भगवान शिव पृथ्वी पर प्राय फागुन मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि आगमन किया करते हैं।भगवान शिव का पृथ्वी पर आगमन का यह महान दिन शिव भक्त महाशिवरात्रि  के उत्सव के रूप में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं।

महाशिवरात्रि के दिवस सभी शिव मंदिरों को पूर्ण रूप से विभूषित किया जाता है।महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्तगण संपूर्ण दिवस निरशन  उपवास रखते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं ।महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्तगण पायस में शुद्ध जल मिश्रित कर शिवलिंग को स्नान कराते हैं और उसके पश्चात शिवलिंग पर बेलपत्र ,फल ,फूल और बेर भेंट स्वरूप अर्पित हैं ऐसा माना जाता है कि इस तरह से भगवान शिव की आराधना पुण्य दायक होती है।शिवरात्रि के दिन ही प्रभु शिव के वाहक नंदी की भी पूजा अर्चना और सेवा की जाती है ।महाशिवरात्रि के दिन गंगा स्नान का एक विशेष महत्व होता है ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने गंगा मां के तेज प्रभाव को अपनी जटाओं में धारण कर मृत्युलोक की उद्धार के लिए धीरे-धीरे पृथ्वी पर छोड़ा था।

शिवरात्रि कथा

शिवरात्रि की कथा में एक कथा बहुत प्रचलित है इस कथा के अनुसार पूर्व काल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी था वह एक साहूकार का कर्जदार था लेकिन उसका ऋण समय पर नहीं चुका सका जिससे साहूकार क्रोधित होकर शिकारी को एक बार पकड़कर शिव मठ में बंदी बना लिया संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी शिकारी बहुत ध्यान से शिव से जुड़ी सभी धार्मिक बातें सुन रहा था चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत कथा भी सुनी शाम होते ही साहूकार ने शिकारी को बुलाकर ऋण चुकता करने की बात पूछी तब शिकारी ने अगले दिन ऋण चुकाने का वचन लेकर अपने आप को बंधन मुक्त कराया। 
शिकारी दूसरे दिन अपनी दिनचर्या की भांति जंगल में शिकार करने निकला दिनभर बंदी ग्रह में रहने के कारण वह बहुत भूखा और प्यासा था शिकार खोजते हुये वह बहुत दूर निकल गया जब अंधेरा होने लगा तो उसने सोचा की आज रात मुझे जंगल में ही बितानी होगी तभी उसे तालाब के किनारे एक बेल का वृक्ष दिखाई दिया वह उस वृक्ष पर चढ गया और रात बीतने का इंतजार करने लगा बेल का वृक्ष के नीचे ही शिवलिंग था जो बेल पत्रों से ढका था शिकारी को उसका पता नहीं था। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोडी संयोगवश वह शिवलिंग पर गिरती चली गई इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गये। एक पहर रात्रि बीत जाने पर तलाब के पास एक हिरनी आई शिकारी ने बाण उठाया और ताने लगा था तभी हिरनी बोली रुक जाओ मैं गर्भवती हूं तुम एक नहीं दो जान लोगे तुम्हें पाप लगेगा तो शिकारी ने उसे छोड़ दिया और बाण अंदर करते वक्त कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरी इस प्रकार शिकारी की पहली पहल की पूजा हो गई।
कुछ समय पश्चात हिरनी का फिर आगमन हुआ शिकारी ने फिर से बाण ताना पर इस बार हिरनी ने कहा कि वह अपने पति से मिलकर आती है तब शिकारी उसका शिकार कर ले फिर शिकारी बाण अंदर करता है और उसी समय फिर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरते हैं शिकारी की दूसरे पहर की भी पूजा हो गई इस प्रकार शिकारी की तीनों पहर की पूजा किसी न किसी कारण से पूरी हो गई उसकी इस प्रकार भूखे रहने से उसका व्रत और शिकार के बहाने  उसकी पूजा हो गई साथ ही रात भर जंगल में बिताने के कारण जागरण भी हो गया उसकी इस तरह शिवजी की पूजा करने से मोक्ष प्राप्त हुआ और मृत्यु के पश्चात उसे यमलोक ना भेजकर शिवगण ले गए जहां शिव जी की कृपा से चंद्रभान का उद्धार हुआ इस कहानी से हमें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि वह भक्त जो यह समझते हैं कि पूजा-पाठ दूध दही बेलपत्र और उपवास रखने से भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं तो यह यह सही नहीं है इन सब के साथ साथ मन में दया भाव भी होना ज्यादा महत्वपूर्ण है।
सावन मास
माता सती शिव को प्रत्येक जन्म में वरने का प्रण लिया था परंतु पिता दक्ष द्वारा पति भगवान शिव का अनादर किए जाने पर सती माता ने स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया भगवान शिव यह सहन ना कर सके और वह इस दुनिया से विरक्त हो गए। सती जी ने पुनः पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय और नैना देवी के घर जन्म लिया ऐसा पुराणों में लिखा है कि बचपन से ही पार्वती जी भगवान शिव को चाहती थी पार्वती जी ने शिव को पाने के लिए कठोर तप और व्रत किये। तीज का कठोर व्रत माता पार्वती जी ने ही शुरू किया ।सावन में शिव को पार्वती के रूप में उनकी पत्नी पुनः मिली इसीलिए भगवान शिव को यह माह बहुत प्रिय है।

निष्कर्ष

भगवान शिव मृत्यु और विनाश की रोशनी और अहंकार को नष्ट करने हेतु सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करते हैं।


Comments

CONTACT FORM

Contact Us