Barack Obama: Inspiring Life Journey and Powerful Leadership Lessons

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  Barack Obama inspirational oil painting with USA flag and his famous quote on leadership — “Leadership is not about the next election, it’s about the next generation.” 🟩 Barack Obama: एक प्रेरक जीवन यात्रा और Leadership के Golden Lessons Barack Obama: Ek Prerak Kahani aur Leadership Lessons Jo Duniya Ko Badal Gaye 🌍 परिचय (Introduction) Barack Obama — एक ऐसा नाम जो पूरी दुनिया में hope (आशा) और change (परिवर्तन) का प्रतीक बन गया। America के पहले African-American President होने के साथ-साथ, उन्होंने यह साबित किया कि अगर आपके पास vision, determination और integrity है, तो कोई भी सपना असंभव नहीं। Obama की life एक message देती है — “Success is not about where you start, it’s about how far you go with purpose.” 🌱 शुरुआती जीवन (Early Life: A Common Beginning with Uncommon Dreams) Barack Hussein Obama II का जन्म 4 August 1961 को Honolulu, Hawaii में हुआ। उनके पिता Barack Obama Sr. Kenya से थे और माता Ann Dunham Kansas (USA) से। उनका बचपन multicultural environment में ...

ROSA LOUISE MCCAULEY PARK BIOGRAPHY




  शाहरुख खान का एक डायलॉग है। 
   " 'Don't Underestimate The Power Of A Common Man'". 
एक आम आदमी जो सुबह उठता है दफ्तर समय पर पहुचने के डर के साथ और 9 से 10 घटें काम करने के बाद शाम को घर पहुचना खाना खाना और सो जाना। एक आम आदमी का जीवन इसी चक्र मे चलता रहता है। लेकिन यदि कोई  आम आदमी  के स्वाभिमान को छुता है तो यही आम आदमी अपनी द्रण संकल्प से दुनिया बदलने का बल भी  रखते है जैसे मंगल पांडे, महात्मा गांधी, भगत सिंह इत्यादि। लेकिन ये आम आदमी एक महिला हो तो ये और विशेष हो जाता है। ऐसी ही साधारण महिला जिन्होने रंग-रूप, ऊंच-नीच और जाति के आधार पर किसी को कम और किसी को ज्यादा का विरोध कर नागरिक अधिकारों की लड़ाई का बिगुल फूका । हम बात कर रहे है अमेरिकी नागरिक अधिकारों की लड़ाई की जननी कही जाने वाली एफ्रो-अमेरिकी रोजा पार्क्स की। गोरे व्यक्ति के लिए बस में अपनी सीट न छोड़ने वाली रोजा ने अमेरिका में बरारबरी की लड़ाई का बिगुल बजाया. रोजा का जन्म 4 फरवरी 1913 को दक्षिण अमेरिकी प्रांत अलाबामा में हुआ था, जहां अश्वेत लोगों को बंदी बनाकर रखा जाता था और उनका लगातार शोषण किया जाता था। 

मॉन्टगोमेरी सिटी कोड




1955 के दौर में मॉन्टगोमेरी सिटी कोड लागू था । बस एक साइन बोर्ड के ज़रिये दो भागों में बांटी हुई थी । जिसके तहत बसों में श्वेत और अश्वेत अमेरिकियों के लिए अलग-अलग सीट निर्धारित की गई थी । श्वेत अमेरिकी लोग आगे बैठते थे जबकि अश्वेत अमेरिकी (अफ्रीकी-अमेरिकी लोग) पीछे बैठते थे।उस समय अश्वेत अमेरिकी लोगों के साथ भेदभाव किया जाता था। जिसके चलते वे पहले आगे से बस में चढ़कर टिकट लेते थे और उसके बाद पीछे के दरवाज़े से बस में आकर बैठते थे। हालांकि बस कोड के मुताबिक, ड्राइवर किसी भी यात्री से रंग के आधार पर सीट छोड़ने के लिए नहीं कह सकता था ।लेकिन मॉन्टगोमेरी बस चालक आदतन इस बात की परवाह किए बिना अश्वेत लोगों को सीट से उठा देते थे।वहीं जो अश्वेत लोग इस बात का विरोध करते थे उन्हें ड्राइवर बस में बिठाने से इंकार कर देते या पुलिस की सहायता से बस से बाहर करवा देते थे।



बगावत वाले दिन

रोजा अलाबामा में दर्जी का काम करती थीं। रोज़ा उस दिन भी रोज़ की तरह बस में सफर कर रही थीं। बस में धीरे-धीरे श्वेत यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी बस पूरी तरह से भर चुकी थी ऐसे में ड्राइवर ने देखा कि कई श्वेत यात्री अब भी बैठ नहीं पाए हैं, तब ड्राइवर ने बस रोकी और साइन बोर्ड को एक सीट पीछे कर दिया।इस कारण उसने सीट पर बैठे चार अश्वेत यात्रियों से जगह छोड़ने के लिए कहा ।
ड्राइबर के कहने पर रोज़ा के साथ बैठे तीन यात्रियों ने सीट छोड़ दी थी लेकिन रोज़ा अपनी सीट पर बैठी रहीं। ड्राइवर ने गुस्से से पूछा कि तुम खड़ी क्यों नहीं होती हो. इस पर रोज़ा ने उत्तर दिया कि ‘मुझे नहीं लगता कि मुझे खड़ा होना चाहिए.’
रोज़ा की इस बात में एक विरोध था। जिसके बाद ड्राइवर ने रोज़ा को सीट से खड़ा करने के लिए बहुत प्रयत्न किए लेकिन रोज़ा ने अपनी सीट नहीं छोड़ी। अब ड्राइवर ने पुलिस को फोन किया और रोज़ा को गिरफ्तार कर लिया गया। जब रोज़ा कोर्ट में पंहुचीं तब स्थानीय समर्थकों ने उनका तालियां बजाकर ज़ोरदार स्वागत किया।30 मिनट की सुनवाई के बाद, रोज़ा को दोषी करार दिया गया, जिसके लिए उनसे 10 डॉलर का जुर्माना साथ ही 4 डॉलर की कोर्ट फीस वसूली गई। अगली शाम रोज़ा को ज़मानत मिली।
रोज़ा के साथ हुई घटना की वजह से अमेरिका की सबसे बड़ी और पुरानी नागरिक अधिकार संस्था एनएएसीपी (नेशनल एसोशियेशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ कलर्ड पीपल) के स्थानीय अध्यक्ष ई.डी निक्सन ने मॉन्टगोमेरी की बसों का बहिष्कार करने की योजना बनाई, जिसके बाद इस बात को अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय के लोगों के बीच फैलाया गया।अश्वेत लोगों को 5 दिसंबर को यानी रोज़ा की कोर्ट में पेशी के दिन मॉन्टगोमेरी बसों का विरोध करने के लिए कहा गया।लोगों से कहा गया कि या तो वे कैब लें या पैदल चलकर जाएं।उस समय अमेरिका में एक बड़े बदलाव की तैयारी चल रही थी।लेकिन यहीं इस लड़ाई का अंत नहीं हुआ था।रोज़ा अपने एक छोटे से विरोध से बड़ी चिंगारी लगाकर छोड़ गई थीं।  ये विरोध 381 दिनों तक चला । इस बहिष्कार के चलते अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों ने बसों से सफ़र करना बंद कर दिया। अब लोग पैदल चलकर या कारपूल कर ऑफिस जाने लगे।

आंदोलन का प्रभाव

शहर में बसें तो थीं लेकिन वह वीरान हो गईं और आंदोलन बड़ा होता चला गया। इस बहिष्कार को खत्म करने के लिए कई कोशिशें की गईं. वहीं इस आंदोलन के मुख्य नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर और ई.डी. निक्सन के घर को जला दिया गया।अश्वेत टैक्सी ड्राइवरों के बीमा रद्द कर दिए गए और उन्हें कानून तोड़ने के लिए गिरफ्तार किया जाने लगा।
आख़िरकार संघर्ष रंग लाई और 13 नवंबर 1956 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया कि बस को रंग के आधार पर बांटना असंवैधानिक था। वहीं अदालत का लिखित आदेश मॉन्टगोमेरी पहुंचने के बाद ये बहिष्कार 20 दिसंबर को समाप्त हो गया। अब एफ्रो-अमेरिकी अश्वेत नागरिक नगर निगम के किसी भी बस में कहीं भी बैठ सकते हैं। इस बहिष्कार को इतिहास में नस्लीय अलगाव के खि़लाफ सबसे बड़े और सफल जन आंदोलनों में से एक माना जाता है। इस घटना से रोज़ा पार्क्स सिविल राइट्स मूवमेंट का प्रतीक बनकर उभरीं ।

उनकी यादें और सम्मान

रोजा पार्क्स की 92 वर्ष की आयु में सन 2005 में मृत्यु हो गई, लेकिन आज भी पूरे अमेरिका में उनके सम्मान में लोग उनकी जन्मतिथि मनाते हैं. रोजा की 100वीं जन्मतिथि पर अमेरिकी डाक सेवा ने उनकी याद में एक डाक टिकट जारी किया, जिस पर उनकी तस्वीर छपी है। टाइम पत्रिका ने सन 1999 में उन्हें 20वीं सदी की 25 सबसे प्रभावशाली महिला की सूची में जगह दी।
राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल की शुरुआत के मौके पर घोषणा की थी कि रोजा की याद में राष्ट्रीय संग्रहालय में उनकी मूर्ति लगाई जाएगी। इस संग्रहालय में रोजा की मूर्ति किसी अश्वेत अफ्रीकी अमेरिकी महिला की पहली मूर्ति है।


ओबामा डेट्रॉयट के हेनरी फोर्ड म्यूजियम भी गए जहां वह बस भी है जिसकी सीट पर बैठ कर रोजा ने पहली बार नस्लभेद का विरोध किया था।ओबामा उस सीट पर भी बैठे जिस सीट पर बैठ कर रोजा ने पहली बार नस्लभेद का विरोध किया था। तब राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था, "मैंने उस सीट पर बैठ कर उस साहस और शक्ति के बारे में सोचा जो हमने कुछ साल पहले देखी और जो हम बदलते समाज के साथ किसी न किसी रूप में देखते आए हैं। कई बार ऐसे लोगों का जिक्र इतिहास की किताबों में नहीं होता, लेकिन वे हममें से ही एक हैं और मौका पड़ने पर अपने मान सम्मान के लिए लड़े हैं."



रोजा पार्क्स ने नागरिक अधिकारों का जो आंदोलन छेड़ा था, उसका असर 1964 में सामने आया जब कांग्रेस ने सिविल राइट ऐक्ट पास किया। पार्क्स को 1996 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कार्यकाल में प्रेसिडेंशियल मेडल आफ फ्रीडम से सम्मानित किया गया। 1997 में उन्हें अमेरिकी संसद का सबसे बड़ा सम्मान कांग्रेशनल गोल्ड मेडल दिया गया।


सन 1992 में, रोज़ा ने अपनी आत्मकथा ‘रोज़ा पार्क्स: माई स्टोरी’ लिखी. उन्होंने अपने जीवन में देखे और सहे भेदभावों के बारे में खुलकर लिखा. रोज़ा की कलम यहीं नहीं थमी. सन 1995 में उन्होंने ‘क्वाइट स्ट्रेंथ’ नाम की एक और किताब लिखी।

बस वाली घटना के बाद कहा जाता है कि पार्क्स की नौकरी चली गई और उन्हें अपने पति के साथ शहर छोड़ कर डेट्रॉयट जाना पड़ा. उसके बाद नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले जॉन कॉन्यर ने उन्हें 1965 में अपने दफ्तर में नौकरी दे दी. रिटायरमेंट तक पार्क्स वहीं काम करती रहीं. आखिरी दिनों में पार्क्स को पैसों की तंगी भी झेलनी पड़ी, साथ ही उनकी याद्दाश्त भी काफी बिगड़ गई थी. 24 अक्तूबर 2005 को उनका देहांत हो गया. उनकी अंतिम विदाई में शामिल 50,000 लोगों में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश भी शमिल थे।

--------------------------------धन्यवाद


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